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छत्तीसगढ़

हम आत्मनिर्भर हैं और भविष्य को लेकर आश्वस्त भी

रायपुर। छोटी सी मदद कैसे किसी परिवार और उसके भविष्य को सशक्त व आत्मनिर्भर बना देती है, इसकी मिसाल है कांकेर की श्रीमती शारदा उसेंडी। राज्य शासन की पहल से एक छोटे से लोन ने न केवल उसकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि बच्चों की बेहतर पढ़ाई-लिखाई के दरवाजे भी खोले।

आदिवासी स्वरोजगार योजना ने बदली जिंदगी, व्यवसाय को मिली मजबूती

बारहवीं तक पढ़ी अंतागढ़ विकासखण्ड के पोण्डगांव की श्रीमती शारदा उसेंडी पहले अपने छोटे से किराना दुकान और थोड़ी-बहुत खेती के सहारे जीवन-यापन कर रही थीं। आय सीमित होने के कारण आर्थिक स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हो पा रहा था। इसी बीच कांकेर के जिला अंत्यावसायी विभाग के माध्यम से उसे जानकारी मिली कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए “आदिवासी स्वरोजगार योजना” के तहत ऋण सुविधा उपलब्ध है। उसने तत्परता दिखाते हुए विभाग में आवेदन दिया। विभाग ने उसके आवेदन को भारतीय स्टेट बैंक, अंतागढ़ भेजा, जहां से उसके लिए एक लाख रूपए का ऋण स्वीकृत हुआ। ऋण के साथ ही विभाग की ओर से दस हजार रूपए का अनुदान भी मिला।
श्रीमती उसेंडी ने इस राशि से अपने किराना व्यवसाय को विस्तार दिया। वह बताती है कि अभी उसे दुकान से हर महीने पांच से सात हजार रुपए तक की शुद्ध कमाई हो रही है। उसके पति और बच्चे भी इस व्यवसाय में पूरा सहयोग कर रहे हैं। अपने किराना दुकान की बदौलत उसने नियमित रूप से बैंक की किस्तें चुकाने के साथ-साथ दोनों बेटों की शिक्षा पूरी करवाई है। उसकी बेटी अभी कॉलेज में पढ़ रही है।
श्रीमती शारदा उसेंडी बताती हैं – “दुकान के विस्तार के बाद हमारी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। अब हम आत्मनिर्भर हैं और भविष्य को लेकर आश्वस्त भी।” उसने छत्तीसगढ़ शासन के अंत्यावसायी विभाग, कांकेर के प्रति आभार जताते हुए आदिवासी युवक-युवतियों से अपील की है कि वे “आदिवासी स्वरोजगार योजना” का लाभ लेकर आत्मनिर्भर बनने की राह में कदम बढ़ाएं।

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