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अमेरिकी प्रतिबंध के चलते चीनी तेल कंपनियों में हड़कंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक हालिया फैसले ने चीन की तेल कंपनियों को हिला कर रख दिया है, जिससे वे खरीदारों की कमी के कारण परेशान हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने मॉस्को के प्रमुख तेल उत्पादकों और उनके कुछ खरीदारों को ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है। इसके बाद, चीनी रिफाइनरियां रूसी तेल की शिपमेंट से दूरी बना रही हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी प्रतिबंध का सीधा असर यह हुआ है कि उन्हें अब अपने खरीदार नहीं मिल रहे और व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का असर दिखाई दे रहा है। व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, सरकारी स्वामित्व वाली बड़ी कंपनियां जैसे सिनोपेक और पेट्रोचाइना, पिछले महीने रोसनेफ्ट पीजेएससी और लुकोइल पीजेएससी पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण कुछ रूसी तेल के कार्गो रद्द करने के बाद इस कारोबार से पूरी तरह हट गई हैं।

अमेरिकी प्रतिबंध से कंपनियों में डर

इसके अलावा, छोटी निजी रिफाइनरियां, जिन्हें ‘टीपॉट्स’ कहा जाता है, भी इस डर से ठप हो गई हैं कि उन पर भी किसी तरह की सजा न लग जाए। उदाहरण के तौर पर, शांदोंग यूलोंग पेट्रोकेमिकल कंपनी को हाल ही में ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने ब्लैकलिस्ट में शामिल किया है। इस फैसले के चलते रूस से चीन में प्रतिदिन लगभग 4 लाख बैरल तेल प्रभावित हो रहा है, जो चीन के कुल तेल आयात का लगभग 45 प्रतिशत है।

साथ ही अन्य निजी रिफाइनरियां इस घटनाक्रम पर कड़ी नजर रख रही हैं और किसी भी गतिविधि से बच रही हैं जो उन्हें भी प्रतिबंधों के दायरे में ला सकती है। इसके बावजूद, टैक्स और नियमों में बदलाव के कारण अन्य कच्चे तेल के उपयोग में कमी आई है, जिससे टीपॉट कंपनियों को कच्चे तेल के आयात में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

रूस का सबसे बड़ा ग्रहक चीन

अमेरिका और उसके सहयोगी देशों का मकसद रूस के तेल राजस्व पर चोट पहुंचाकर यूक्रेन युद्ध को रोकना है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है और फिलहाल यह रूस से सबसे अधिक तेल आयात कर रहा है। भारत इस सूची में दूसरे स्थान पर है। इस स्थिति ने वैश्विक तेल व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला को भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है, क्योंकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चीनी रिफाइनरियों के व्यापारिक विकल्प सीमित हो गए हैं।

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